कृष्ण कि महाभारत || विजय मेरोठा ||
कृष्ण कि महाभारत (विजय मेरोठा) जो आँखो संग न देखता धृतराष्ट्र को क्या बोलता, बेटे के ही मोह में विनाश द्वार खोलता । जो न जानता शांति को दुर्योधन, कृष्ण को न मानता बात को न जानता, हस्तिनापुर को न मानता । अश्वमेध यज्ञ का सम्राट जो युद्धिष्ठ था देखते ही जानता जीत पाण्डवो का निश्च था, कृष्ण हो जिसके गिरकर अर्जुन भी उसका उथिष्ठ था विराट रूप दिखला गया नाम भी तो कृष्ण था । महान था वो भीष्म भी वो कर्ण भी वो द्रोण भी, जो कृष्ण के विपक्ष में था, था खुद अधर्म ही । कुरुक्षेत्र में लड़ गये, उसी माटी में जो पड़ गये, जो गये कृष्ण की शरण पांडवो की जीत योगदान कर गये । था महान भीम भी सौ कौरवो को ले गया, जब माँगा खून द्रोपदी ने फाड़ छाती हाथ लहू वो ले गया दुश्शासन-दुर्योधन-द्रोण को भी ले गया । फिर ढूंढ दुर्योधन को मेंढक बने तालाब में डूबा नहीं था जल में वो मृत्यु के प्रलाब में पूछा फिर युधिष्ठ ने युद्ध करो एक से, जब देखा मेने यह सब तो लगा वो गांधारी पुत्र भी महान था, छोड़ युधिष्ठ अर्जुन नकुल सहदेव भीम को चुन गया वो शिष्य भी बलराम था । अन्त हुआ तो जीत हुई सत्य सनातन धर्म की, बोल गया बिन धड़ बर्बरीक पौत्र भीम क